इस वर्ष दीपावली का पुनीत पर्व 24 अक्टूबर को मनाया जाएगा ! 24 अक्टूबर को संध्या 5:04 के पश्चात अमावस्या आगमन हो रहा है ! दीपावली प्रदोष-रात्रि-व्यापिनी व्रत है, इसलिए सोमवार को लक्ष्मी & गणेश और कुबेर का पूजन किया जाएगा ! इस दिन सर्वोत्तम पूजन का मुहूर्त वृष लग्न-:-06:36 संध्या से 08:33 तक सिंह लग्न-:-01:04 रात्रि से 03:18 तक ! संस्कृत : दीपावलिः = दीप + अवलिः = दीपकों की पंक्ति, या पंक्ति में रखे हुए दीपक शरद ऋतु उत्तरी गोलार्द्ध में हर वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन सनातन त्यौहार है।यह कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है और भारत के सबसे बड़े और सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। दीपावली दीपों का त्योहार है। आध्यात्मिक रूप से यह 'अन्धकार पर प्रकाश की विजय' को दर्शाता है।दीपावली
भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात हे भगवान ! मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाइए। यह उपनिषदों की आज्ञा है।
माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा भगवान रामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे ! अयोध्यावासियों का हृदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था। श्री राम जी के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए। कार्तिक मास की काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीपावली यही चरितार्थ करती है- असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है !
नरकासुर का वध-:-
दीपावली के संदर्भ में एक यह भी पौराणिक कथा हैं कि जब भगवान विष्णु ने द्वापर युग में श्री कृष्ण के रूप में जन्म लिया था उस समय गोकुल में भगवान श्री कृष्ण को मारने के लिए मथुरा के राजा कंस ने नरकासुर नामक राक्षस को भेजा था तो भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर राक्षस का इसी दिन वध किया था और नरकासुर के द्वारा बंदी बनाई गई देवताओं मानव और गंधर्वों की 16000 कन्याओं को उस से मुक्त करा कर खुशी-खुशी उनके घर पहुंचाया था. इसीलिए ब्रज वासियों ने खुश होकर पूरे गोकुल को दीपों से जलाकर पूरा गोकुल प्रज्वलित किया और खुशी मनाई थी.समुद्र मंथन और मां लक्ष्मी का प्रकट होना
दीवाली का महत्व एक और पौराणिक कथा हैं जिसके अनुसार जब समुद्र मंथन हुआ दीपावली के दिन समुद्र से देवी लक्ष्मी प्रकट हुई . समुद्र मंथन करने का एक कथा हैं जिसके अनुसार दुर्वासा ऋषि ने देवताओं के राजा इंद्र को श्राप दिया था.जिसके कारण देवी लक्ष्मी जी समुद्र में समाहित हो गई थी जिस वजह से देवताओं में हाहाकार मच गया था और असुर देवताओं पर हावी होने लगे थे इसी को देखते हुए भगवान विष्णु ने एक योजना बनाकर देवताओं और असुरों को मिलाकर समुद्र मंथन किया गया.इस समुद्र मंथन से देवी लक्ष्मी फिर से बाहर निकली तो इस खुशी में पूरे धरती पर और देवलोक में चारों तरफ खुशियां मनाई जाने लगी दीप प्रज्वलित किया गया और उस दिन मां लक्ष्मी का पूजन अर्चन हुआ तभी से दीपावली के दिन देवी लक्ष्मी की पूजा करने की मान्यता हैं.दीपावली का पर्व कार्तिक मास में अमावस्या के दिन मनाया जाता हैं. इस दिन मां लक्ष्मी और प्रथम पूज्य गणेश जी का पूजा होता हैं. हिंदू धर्म के अलावा अनेक धर्मों में भी यह पर्व मनाया जाता है ! बौद्ध धर्म के प्रवर्तक भगवान महात्मा बुद्ध को सम्मान देने के लिए उनके जो अनुयाई थे उन्होंने बहुत सारे दीप जलाकर उनका स्वागत किया था और यह पर्व मनाया था.
जैन धर्म में भी दीपावली बहुत ही हर्षोल्लास से और खुशी से मनाया जाता हैं ! यह एक हर्ष उल्लास और प्रकाश पर्व माना जाता हैं.ऐसा कहा जाता हैं कि जो भी बुराई हैं या जो भी बुरी शक्तियां हैं वह दीपावली के दिन भी घी के दिए में जलकर नष्ट हो जाते हैं. दीपावली एक प्रकाश का और स्वच्छता का पर्व के रूप में जाना जाता हैं.
इस दिन मां लक्ष्मी और गणेश जी का पूजन बहुत ही धूमधाम से और हर्षोल्लास से करते हैं क्योंकि मां लक्ष्मी धन की देवी मानी जाती हैं और भगवान गणेश जी को विघ्नहर्ता कहे जाते हैं तो इस दिन लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा करने से घर के जो भी विघ्न होते हैं वे समाप्त हो जाते हैं और माता लक्ष्मी का घर में वास होता हैं.यह पर्व बुराई पर अच्छाई का जीत का पर्व माना जाता हैं दीपावली को अज्ञान पर ज्ञान और निराशा पर आशा की विजय का त्यौहार कहा जाता है.